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इशरत बरैल्वी

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इशरत बरैल्वी

ग़ज़ल 2

 

अशआर 4

उस रश्क-ए-चमन के तईं गर देखने पाऊँ

मरने से जो बच जाऊँ तो फूला समाउँ

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किया जो पहले ही दाग़ दिल को मैं उस के ग़म में तो इश्क़ बोला

चराग़ रौशन मुराद हासिल मुराद हासिल चराग़ रौशन

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शरार-ए-ग़म से तिरे अलम में ये मेरे दिल के हैं दाग़ रौशन

करे दिवाली को जैसे आलम तमाम घर में चराग़ रौशन

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उस की तस्वीर में ख़ूँ-रेज़ी के सब चाव निकाल

मुसव्विर मिरी गर्दन पे कई घाव निकाल

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