खालिद गनी के शेर
रंग ख़ुश्बू और मौसम का बहाना हो गया
अपनी ही तस्वीर में चेहरा पुराना हो गया
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अब मिरी तन्हाई भी मुझ से बग़ावत कर गई
कल यहाँ जो कुछ हुआ था सब फ़साना हो गया
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मिरे सुलूक की क़ीमत यहीं अदा कर दे
मुझे गुनाह की लज़्ज़त से आश्ना कर दे
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लकीरें पीटने वालों को 'ख़ालिद'
लकीरों पर हँसी आने लगी है
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