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लुत्फ़ुन्निसा इम्तियाज़

1761 | औरंगाबाद, भारत

लुत्फ़ुन्निसा इम्तियाज़

ग़ज़ल 8

नज़्म 1

 

अशआर 3

इश्क़ के घाट पर सँभल कर चढ़

क्यों कि उस का चढ़ाओ मुश्किल है

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जुनूँ के शाह ने जब से लिया है क़िलअ'-ए-दिल को

ये मुल्क-ए-अक़्ल वीराँ हो गया किस किस ख़राबी से

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पंद से नासेह के दोज़ख़ का मुझे कुछ ख़ौफ़ नईं

मग़्फ़िरत बे-शक हुई जिस का अली वाली हुआ

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पुस्तकें 1

 

ऑडियो 5

एक हों नालाँ क़फ़स में हाए ऐ बुलबुल ख़मोश

दश्त-ए-वहशत में हमारा अब हुआ है बूद-ओ-बाश

है दिल-ए-उश्शाक़ तेरे जाम-ओ-मीना बिन ख़राब

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