मीर नजफ़ अली नजफ़ के शेर
किस तरह रब्त न हो ज़ुल्फ़ से दीवानों को
रब्त होता है परेशाँ से परेशानों को
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere