महशर आफ़रीदी के शेर
ज़मीं पर घर बनाया है मगर जन्नत में रहते हैं
हमारी ख़ुश-नसीबी है कि हम भारत में रहते हैं
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टैग : वतन-परस्ती
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मुझे जिस हाल में छोड़ा उसी हालत में पाओगी
बड़ी ईमान-दारी से तुम्हारा हिज्र काटा है
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तुम मुझे अपनी क़सम दे कर कहो
'आफ़रीदी' आप सिगरेट छोड़ दें
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तुम्हारे हुस्न को कब तक वरक़ वरक़ पढ़ते
सो एक रात में पूरी किताब पढ़ डाली
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'अक़्ल और 'इश्क़ लड़ते रहे देर तक
'अक़्ल मारी गई 'इश्क़ ज़िंदा रहा
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वो कुछ ग़लत नहीं था हमीं बेवक़ूफ़ थे
शीशे को साफ़ करते रहे इस तरफ़ से हम
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जब तुम्हारी ये मातमी आँखें
मुस्कुराती हैं शोर थमता है
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उस की मग़रूर हवा तेज़ क़दम चलती रही
लौ लरज़ती ही रही मेरी पशेमानी की
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