मोहम्मद हमीद शाहिद की कहानियाँ
स्वर्ग में सुवर
जब से थूथनियों वाले आए हैं, दुख मौत की अज़ीयत से भी शदीद और सफ़्फ़ाक हो गए हैं। ताहम एक ज़माना था... और वो ज़माना भी क्या ख़ूब था कि हम दुख के शदीद तजुर्बे से ज़िंदगी की लज़्ज़त कशीद किया करते। उस लज़्ज़त का लपका और चसका ऐसा था कि ख़ाली बखियों के भाड़ में भूक
दुख कैसे मरता है
इमरजेंसी वार्ड में दाख़िल होते ही नबील का दिल उलटने लगा, ज़ख़्मों पर लगाई जाने वाली मख़सूस दवाओं की तेज़ बू ने साँसों की सारी अमी-जमी उखाड़ दी थी। उसे मेडिकल वार्ड नंबर तीन जाना था मगर इस हस्पताल में ख़राबी ये थी कि अंदर दाख़िल होते ही पहले इमरजेंसी वार्ड
रुकी हुई ज़िंदगी
वो खाने पर टूट पड़ा, नदीदा हो कर। आतिफ़ उसे देख रहा था, हक दक। कराहत का गोला पेट के वसत से उछल-उछल कर उसके हुल्क़ूम में घूँसे मार रहा था, यूँ कि उसे हर नए वार से ख़ुद को बचाने के लिए ध्यान इधर-उधर बहकाना और बहलाना पड़ता। वो भूका था। शायद बहुत