मोहम्मद हुसैन कलीम के शेर
लगती है अब तो क़ुलक़ुल-ए-मीना से दिल को ठेस
वो दिन गए कलीम कि ये शीशा संग था
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere