मोहम्मद यासिर मुस्तफ़वी
ग़ज़ल 6
अशआर 6
ख़ुद-कुशी करने को दरिया की तरफ़ जाता हूँ
और मिल जाता है हर रोज़ किनारे कोई
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere