मोहसिन आफ़ताब केलापुरी
ग़ज़ल 13
नज़्म 18
अशआर 1
तुम्हारी याद भी चुपके से आ के बैठ गई
ग़ज़ल जो 'मीर' की इक गुनगुना रहा था मैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere