मोहसिन शकील
ग़ज़ल 2
नज़्म 2
अशआर 1
हम उसे अन्फ़ुस ओ आफ़ाक़ से रखते हैं परे
शाम कोई जो तिरे ग़म से तही जाती है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere