मुश्ताक़ नक़वी के शेर
रोज़ जीते हैं रोज़ मरते हैं
किस क़दर सख़्त-जान हैं हम लोग
हम से मिलता है मंज़िलों का पता
और ख़ुद बे-निशान हैं हम लोग
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टैग : मंज़िल
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