नवाब अली ख़ाँ सहर के शेर
दश्त-ए-वहशत में जुनूँ ने ये बिगाड़ी सूरत
कि मिरी शक्ल भी यारान-ए-वतन भूल गए
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वाए नाकामी तब आया साक़ी-ए-पैमाँ-शिकन
जब हमारी उम्र का लबरेज़ साग़र हो गया
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