पूनम मीरा के शेर
मुझ में क्या मेरे सिवा और भी रहता है कोई
मैं तो सो जाती हूँ फिर ख़्वाब किसे दिखते हैं
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दश्त आँखों में था आवाज़ में वीरानी थी
खा गया शहर उसे कहते हैं दीवानी थी
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आसमानों के खुले बाब किसे दिखते हैं
चश्म-ए-पुर-आब के गिर्दाब किसे दिखते हैं
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