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क़ैसर-उल जाफ़री

1926 - 2005 | मुंबई, भारत

अपनी ग़ज़ल "दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है" , के लिए प्रसिद्ध

अपनी ग़ज़ल "दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है" , के लिए प्रसिद्ध

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ग़ज़ल

घर बसा कर भी मुसाफ़िर के मुसाफ़िर ठहरे

नोमान शौक़

ज़ेहन में कौन से आसेब का डर बाँध लिया

नोमान शौक़

तिरी बेवफ़ाई के बाद भी मिरे दिल का प्यार नहीं गया

नोमान शौक़

दश्त-ए-तन्हाई में कल रात हवा कैसी थी

नोमान शौक़

बरसों के रत-जगों की थकन खा गई मुझे

नोमान शौक़

यूँ बड़ी देर से पैमाना लिए बैठा हूँ

नोमान शौक़

सदियों तवील रात के ज़ानू से सर उठा

नोमान शौक़

सारी दुनिया के तअल्लुक़ से जो सोचा जाता

नोमान शौक़

हवा बहुत है मता-ए-सफ़र सँभाल के रख

नोमान शौक़

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