क़ुली क़ुतुब शाह के शेर
'क़ुतुब' शह न दे मुज दिवाने को पंद
दिवाने कूँ कुच पंद दिया जाए ना
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मैं न जानूँ काबा-ओ-बुत-ख़ाना-ओ-मय-ख़ाना कूँ
देखता हूँ हर कहाँ दस्ता है तुज मुख का सफ़ा
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करें ताक़त गँवा कर आबिदाँ मय-ख़ाना कूँ सज्दा
क्या ज़ुन्नार में तस्बीह देखन रू-ए-ज़ेबारा
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