रशीद अमजद की कहानियाँ
दश्त-ए-तमन्ना
ख़ज़ाने का खवा मुतवस्सित तबक़े के अक्सर लोगों की तरह उसे भी विरासत में मिला था, पुराने घर में उसके बाप ने भी कई जगहें लिख दी थीं लेकिन ख़ज़ाना तो न मिला घर की ख़स्तगी में इज़ाफ़ा हो गया। फिर उसने ये ख़्वाब देखना छोड़ दिया जो उसे अपनी माँ से वर्से में मिला था।
दश्त-ए-इमकाँ
ख़ज़ाने वाला ख़्वाब बरसों पुराना था, एक सुबह नाश्ता करते हुए माँ ने कहा था... "मुझे यक़ीन है कि इस घर में कहीं ख़ज़ाना है।" उनकी ख़ामोशी पर वो झिजक सी गई... "रात मैंने फिर वही ख़्वाब देखा है।" उसने पूछा... "कौन-सा ख़्वाब?" "वही ख़ज़ाने वाला...