साबिर रज़ा
ग़ज़ल 8
अशआर 1
तअल्लुक़ तुम से जो भी है नहीं मालूम कल क्या हो
चलो ये फ़ैसला अपना ख़ुदा पर छोड़ देते हैं
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere