सिदरा सहर इमरान के शेर
मुझ को तो ख़ैर ख़ाना-बदोशी ही रास थी
तेरे लिए मकान बनाना पड़ा मुझे
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इस नए साल के स्वागत के लिए पहले से
हम ने पोशाक उदासी की सिला के रख ली
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चाय के तल्ख़ घूँट से उठता हुआ ग़ुबार
वो इंतिज़ार-ए-शाम वो मंज़र कहाँ गया
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टैग : चाय
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