सुनदुस शेख़ के शेर
मुख़िल करती है मेरे वज्द में पलकों की जुम्बिश भी
तुम्हारी नींद गहरी हो मिरा विज्दान पूरा हो
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere