सुरेंद्र प्रकाश की कहानियाँ
बाज़गोई
यह एक ऐतिहासिक काहनी है। यह मिस्र के एक ताजिर फ़रीद इब्ने-सईद, मौसीक़ीकार और नील नदी के किनारे बसे एक उजागेर शहर की कहानी है। सईद अपने ताजिरी काफ़िले के साथ उजागेर आता है, लेकिन वहाँ उसके सामने ऐसे हालात दरपेश आते हैं, जो उसे मौत के चौखट तक ले जाते हैं। लेकिन कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती। सच कहूँ तो कहानी यहीं से शुरू होती... और जो कहानी यहाँ से शुरू होती है, उसे आप यहाँ पढ़ सकते है।
रोने की आवाज़
यह एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। वह एक इमारत में कमरा लेकर तन्हा रहता है, और आस-पास की गतिविधियों को नोट करता रहता है। उसे हर वक़्त किसी के रोने की आवाज़ सुनाई देती रहती है। इन सब से तंग आकर वह बाहर जाने के लिए दरवाज़ा खोलता है, तो उसे पता चलता कि कोई और नहीं बल्कि वह ख़ुद रो रहा है।
दूसरे आदमी का ड्राइंग रूम
यह एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। एक शख़्स समंदर किनारे स्थित घर में जाता है, और उसके ड्राइंग में रखे सामान को देखकर उसकी जो कैफ़ियत होती है, वही सब यहाँ बयान की गई है। इसके साथ ही ड्राइंग की साज-सज्जा और तस्वीरों से जुड़ी अपनी स्मृतियों को भी वह बड़ी साफ़गोई से बयान करता है।
बजूका
किसान के जीवन की पृष्ठभूमि पर लिखी गई एक मर्मस्पर्शी कहानी है। इस कहानी की विशेषता यह है, कि इसका नायक भी प्रेमचंद के ‘गोदान’ उपन्यास का होरी ही है। प्रेमचंद अपने उपन्यास में होरी को अंत में मार देते हैं, जबकि यहाँ होरी के बुढ़ापे को, उसके पूरे परिवार और उनकी तत्कालीन परिस्थिति को दिखाया गया है। बुढ़ापे में कृषक होरी के सामने कौन सी नई समस्या आती है, उसी को इस कहानी में बयान किया गया है।