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तालिब अली खान ऐशी

1783 - 1824/5

तालिब अली खान ऐशी

ग़ज़ल 2

 

अशआर 3

कोई इस फ़स्ल में दीवाना हुआ है शायद

कि हवा हाथ में ज़ंजीर लिए फिरती है

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कम हुई बाँग-ए-जरस भी या-रब

हम से वामाँदा किधर जाएँगे

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कौन पाबंद-ए-जुनूँ फ़स्ल-ए-बहाराँ में था

इस बरस नंग-ए-जवानी था जो ज़िंदाँ में था

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