उवैस गिराच
ग़ज़ल 10
अशआर 1
सभी नज़ारे मिरी नज़र में ग़ुबार बन कर सिमट गए हैं
तुझे न आया नज़र तो शायद नज़र में तेरी असर नहीं है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere