Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Wafa Naqvi's Photo'

नई नस्ल के नुमाइंदा शाइरों और फ़िक्शन निगारों में शामिल

नई नस्ल के नुमाइंदा शाइरों और फ़िक्शन निगारों में शामिल

वफ़ा नक़वी के शेर

17
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

ज़मीं उठेगी नहीं आसमाँ झुकेगा नहीं

अना-परस्त हैं दोनों के ख़ानदान बहुत

एक ही रंग में जीने का हुनर सीखा है

हम से हर बात पे चेहरा नहीं बदला जाता

इस भीड़ में दुनिया की हम तुम बिछड़ जाएँ

मैं तुम पे नज़र रक्खूँ तुम मुझ पे नज़र रखना

आया फिर भी चाँद उतर कर ज़मीन पर

करते रहे दरख़्त इशारे तमाम रात

अहल-ए-जुनूँ पसंद थे उस को इस लिए

ठुकरा दिया गया मुझे मज्ज़ूब देख कर

अब ये ख़्वाहिश है करें लोग हमारी ग़ीबत

फैल जाएँ तिरी गलियों में ख़बर की सूरत

बस इक निशान सा बाक़ी था कच्चे आँगन में

परिंदा लौट के आया तो मर चुका था दरख़्त

ये साज़िशों का दौर है तिश्ना-लब हयात

पानी तलाश करना समुंदर को छोड़ कर

ख़िज़ाँ आने नहीं दूँगा कभी मैं अपने फूलों पर

गुलिस्ताँ को लहू दे कर सँवारूँगा ये वा'दा है

छुपा रहता है दस्त-ए-आरज़ू ख़ुद्दार लोगों का

बड़ी मुश्किल से अपनी ज़ात का इज़हार करते हैं

सब लोग चल रहे थे सड़क पर मिला के हाथ

देखा जो ग़ौर से तो किसी का कोई था

अब उन से पाई है तकलीफ़ तो शिकायत क्या

हमीं ने सर पे चढ़ाया था कुछ कमीनों को

बस एक पल की तमन्ना-ए-वस्ल की ख़ातिर

तमाम 'उम्र लगा दी गई सँवरने में

हमीं से अजनबी लहजे में बात करती है

हमारे घर की हमारे दयार की मिट्टी

ये किसे ज़ंजीर-बस्ता कर के लाई है हयात

क़ैद-ख़ाना हो रहा है क्यों मुनव्वर देखना

हर दौर का शहीद तिरे क़ाफ़िले में है

होती नहीं हुसैन तिरी कर्बला तमाम

कोई कैसे पा सकेगा साएबानी में सुकून

धूप जब बैठी हुई हो साया-ए-दीवार में

ग़नीमत जान घर के इस सुकूँ को

दरख़्तों का अभी साया घना है

Recitation

बोलिए