वसीम अल्मास के शेर
मिरी फ़ितरत में बचपन ही से ज़िद है इस लिए अब भी
चराग़ों को हवा के सामने मद्धम नहीं करता
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere