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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

1904 - 1975

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी के वीडियो

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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिक्खा था सो भी मिट गया

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

कहते तो हो तुम सब कि बुत-ए-ग़ालिया-मू आए

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

कोई उम्मीद बर नहीं आती

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

कोई दिन गर ज़िंदगानी और है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

चाहिए अच्छों को जितना चाहिए

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ौक़ ओ शौक़

क़ल्ब ओ नज़र की ज़िंदगी दश्त में सुब्ह का समाँ ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

बे-ए'तिदालियों से सुबुक सब में हम हुए

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

लेनिन

ऐ अन्फ़ुस ओ आफ़ाक़ में पैदा तिरी आयात ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

सर-गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

है यक दो नफ़स सैर-ए-जहान-ए-गुज़राँ और

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

इक जाम खनकता जाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ऐ शरीफ़ इंसानो

ख़ून अपना हो या पराया हो ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ख़िज़्र-ए-राह

शाइ'र ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ग़म-ए-दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

जब क़तअ' की मसाफ़त-ए-शब आफ़ताब ने

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

जिब्रईल-ओ-इबलीस

जिब्रईल ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

नहीं कि मुझ को क़यामत का ए'तिक़ाद नहीं

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

पतरस बुख़ारी मरहूम

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

बख़ुदा फ़ारस-ए-मैदान-ए-तहव्वुर था 'हुर'

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

बला से हैं जो ये पेश-ए-नज़र दर-ओ-दीवार

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

मकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

वारस्ता उस से हैं कि मोहब्बत ही क्यूँ न हो

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

वालिदा मरहूमा की याद में

ज़र्रा ज़र्रा दहर का ज़िंदानी-ए-तक़दीर है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

सरापा रेहन-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-उल्फ़त-हस्ती

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बा'द

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

आता है नज़र अंजाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

गुम-कर्दा-राह ख़ाक-बसर हूँ ज़रा ठहर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

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