Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

हास्य/व्यंग्य: इब्न-ए-इंशा की 10 चुनिंदा तहरीरें

975
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

नजात का तालिब, ग़ालिब

(चंद ख़ुतूत) (1) “लो मिर्ज़ा तफ़ता एक बात लतीफ़े की सुनो। कल हरकारा आया तो तुम्हारे ख़त के साथ एक ख़त करांची बंदर से मुंशी फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का भी लाया जिसमें लिखा है कि हम तुम्हारी सदसाला बरसी मनाते हैं। जलसा होगा जिसमें तुम्हारी शायरी पर लोग मज़मून पढ़ेंगे।

इब्न-ए-इंशा

कस्टम का मुशायरा

कराची में कस्टम वालों का मुशायरा हुआ तो शायर लोग आओ-भगत के आ'दी दनदनाते पान खाते, मूछों पर ताव देते ज़ुल्फ़-ए-जानाँ की मलाएँ लेते ग़ज़लों के बक़्चे बग़ल में मारकर पहुँच गए। उनमें से अक्सर क्लॉथ मिलों के मुशायरों के आ'दी थे। जहाँ आप थान भर की ग़ज़ल भी पढ़ दें

इब्न-ए-इंशा

फ़ैज़ और मैं

बड़े लोगों के दोस्तों और हम जलीसों में दो तरह के लोग होते हैं। एक वो जो इस दोस्ती और हम जलीसी का इश्तिहार देकर ख़ुद भी नामवरी हासिल करने की कोशिश करते हैं। दूसरे वो इ’ज्ज़-ओ-फ़रोतनी के पुतले जो शोहरत से भागते हैं। कम अज़ कम अपने ममदूह की ज़िन्दगी में। हाँ

इब्न-ए-इंशा

हम फिर मेहमान-ए-खु़सूसी बने

मोमिन की पहचान ये है कि वो एक सुराख़ से दुबारा नहीं डसा जा सकता। दूसरी बार डसे जाने के ख़्वाहिशमंद को कोई दूसरा सुराख़ ढूंढना चाहिए। ख़ुद को मेहमान-ए-खुसूसी बनते हमने एक बार देखा था। दूसरी बार देखने की हवस थी। अब हम हर रोज़ बालों में कंघा करके और टाई

इब्न-ए-इंशा

दाख़ले जारी हैं

परसों एक साहिब तशरीफ़ लाए, है रिंद से ज़ाहिद की मुलाक़ात पुरानी पहले बरेली को बाँस भेजा करते थे। ये कारोबार किसी वजह से न चला तो कोयलों की दलाली करने लगे। चूँकि सूरत उनकी मुहावरे के ऐन मिस्दाक़ थी, हमारा ख़्याल था इस कारोबार में सुर्ख़रू होंगे, लेकिन

इब्न-ए-इंशा

जंत्री नए साल की

आमद बहार की है जो बुलबुल है नग़मा-संज। यानी बुलबुल बोलता था या बोलती थी तो लोग जान लेते थे कि बहार आगई है। हम नए साल की आमद की फ़ाल जंत्रियों से लेते हैं। अभी साल का आग़ाज़ दूर होता है कि बड़ी-बड़ी मशहूर आ'लिम, मुफ़ीद आ'लिम जंत्रियाँ दूकानों पर आन मौजूद

इब्न-ए-इंशा

नोवेल मैनुफेक्चरिंग कंपनी लिमिटेड

पाकिस्तान नॉवेल मैनुफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड होनहार मुसन्निफ़ीन और यक्का-ताज़ नाशिरीन के लिए अपनी ख़िदमात पेश करने का मसर्रत से ऐलान करती है। कारख़ाना हज़ा में नॉवेल जदीद तरीन ऑटोमेटिक मशीनों पर तैयार किए जाते हैं और तैयारी के दौरान उन्हें हाथ से नहीं

इब्न-ए-इंशा

कुछ आदाद-ओ-शुमार के बारे में

हमारा हिसाब हमेशा से कमज़ोर रहा है। यूं तो और भी कई चीज़ें कमज़ोर रही हैं। मसलन माली हालत, ईमान, लेकिन उनके ज़िक्र का ये मौक़ा नहीं। उधर आज की दुनिया आदाद-ओ-शुमार और हिसाब किताब की दुनिया है हत्ता कि हमारे दोस्त तारिक़ अज़ीज़ भी जो हमारी तरह निरे शायर हुआ

इब्न-ए-इंशा

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए