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फ़रीद परबती

1961 - 2011 | श्रीनगर, भारत

फ़रीद परबती

ग़ज़ल 15

अशआर 6

किसी पे करना नहीं ए'तिबार मेरी तरह

लुटा के बैठोगे सब्र क़रार मेरी तरह

कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती है

कभी महफ़ूज़ कश्ती में सफ़र करने से डरता हूँ

'फ़रीद' इक दिन सहारे ज़िंदगी के टूट जाएँगे

सबब ये है कि ख़ुद को बे-सहारा कर रहा हूँ मैं

तुम्हें भी भूलने की कोशिशें कीं

कि ख़ुद पर भी क़यामत कर गया वो

तमन्ना अपनी उन पर आश्कारा कर रहा हूँ मैं

जो पहले कर चुका हूँ अब दोबारा कर रहा हूँ मैं

रुबाई 12

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