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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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नितिन नायाब

1981 | अलीगढ़, भारत

नितिन नायाब

ग़ज़ल 14

नज़्म 2

 

अशआर 20

ख़्वाब में कोई तो मंज़िल उन्हें दिखती होगी

जाते तो होंगे कहीं नींद में चलने वाले

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दिल वो पर्वत कि जो इक सम्त झुका जाता है

ग़म वो दरिया कि जो रहता है रवाँ एक तरफ़

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ख़ुश्क गुल फिर भी किताबों में भले लगते हैं

ज़ंग लग जाए तो तलवार बुरी लगती है

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गली के मोड़ पे बेवा है बद-नसीब कोई

सुहागनों के लिए चूड़ियाँ बनाती है

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तुझ को इस जिस्म की रौनक़ पे भला क्यों है ग़ुरूर

जिस की ज़ौ क़ब्र की मिट्टी के बराबर भी नहीं

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