शहबाज़ रिज़्वी के शेर
इक रोज़ इक नदी के किनारे मिलेंगे हम
इक दूसरे से अपना पता पूछते हुए
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मिरी ज़मीन पे फैला है आसमान-ए-अदम
अज़ल से मेरे ज़माने पे इक ज़माना है
मर रहा हूँ तो याद आता है
जाने कितनों की ज़िंदगी था मैं
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टैग : मौत
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