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क़तआ'त

गज़ल में कभी कभी बीच में दो-तीन ऐसे अशआर लाये जाते हैं जिन में कोई बात निरंतरता के साथ बयान की जाती है। ये चंद अशआर ग़ज़ल के शेरों से अलग होते हैं, इस लिए इन्हें क़तअ कहते हैं। जिस ग़ज़ल में क़तअ हो उसे क़तअ-बंद ग़जल कहा जाता है।

1919 -2001

सबसे लोकप्रिय शायरों में शामिल/प्रमुख फि़ल्म गीतकार/अपनी गज़ल ‘गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते है’ के लिए प्रसिद्ध

1993

नई नस्ल के नुमाइंदा शाइर, नौजवानों में मक़बूल, ग़ज़ल की शायरी की एक मुनफ़रिद आवाज़

1887 -1968

पाकिस्तान के उस्ताद शायर, कई लोकप्रिय शेरों के रचयिता।

1725 -1794

18वी सदी के अग्रणी शायर, मीर तक़ी 'मीर' के समकालीन।

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