aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "कबाब-ए-दिल-ए-समंदर"
हदीस-ए-दिल पब्लिकेशन, दिल्ली
पर्काशक
अंसार दिन-ए-इलाही मछलीशहरी
लेखक
नसीम इब्न-ए-समद
born.1947
मतबा महकमा-ए-सदर निज़ामत कोतवाली अज़ला सरकार-ए-आली
सदर हल्क़ा-ए-अदब, बीकानेर
सदर-ए-आलम साहब
मतबा समर-ए-हिन्द, लखनऊ
सद्र-ए-अंजुमन इस्लामिया, हैदराबाद
दफ्तर सद्र-ए-मुहासिब सरकार आली
संपादक
कारवान-ए-अदब मुलतान सदर, लाहौर
मतबूआ सदर-ए-अंजुमन प्रेस मूस्लिस हाल, बंगलाैर
श्री डब्ल्यू. ए. शाहानी फॉर दि स्कूल एंड कॉलेज बुक स्टाल, बॉम्बे
आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आयाकितने भूले हुए ज़ख़्मों का पता याद आया
शग़ुफ़्तगी-ए-दिल-ए-कारवाँ को क्या समझेवो इक निगाह जो उलझी हुई बहार में है
तू मुझे तंग न कर ए दिल-ए-आवारा-मिज़ाजतुझ को इस शहर में लाना ही नहीं चाहिए था
मुदावा-ए-दिल-ए-दीवाना करतेये करते हम तो कुछ अच्छा न करते
इक क़यामत है बपा शोर-ए-दिल-ए-दिल-गीर सेउड़ गए टुकड़े फ़लक के आह की तासीर से
इश्क़ की कहानी में शिकवे शिकायतों की अपनी एक जगह और अपना एक लुत्फ़ है। इस मौक़े पर आशिक़ का कमाल ये होता है कि वो माशूक़ के ज़ालिम-ओ-जफ़ा और उस की बे-एतिनाई का शिकवा इस तौर पर करता है कि माशूक़ मुद्दुआ भी पा जाए और आशिक़ बद-नाम भी न हो। इश्क़ की कहानी का ये दिल-चस्प हिस्सा हमारे इस इन्तिख़ाब में पढ़िए।
शाम का तख़्लीक़ी इस्तेमाल बहुत मुतनव्वे है। इस का सही अंदाज़ा आप हमारे इस इन्तिख़ाब से लगा सकेंगे कि जिस शाम को हम अपनी आम ज़िंदगी में सिर्फ़ दिन के एक आख़िरी हिस्से के तौर देखते हैं वो किस तौर पर मानी और तसव्वुरात की कसरत को जन्म देती है। ये दिन के उरूज के बाद ज़वाल का इस्तिआरा भी है और इस के बरअक्स सुकून, आफ़ियत और सलामती की अलामत भी। और भी कई दिल-चस्प पहलू इस से वाबस्ता हैं। ये अशआर पढ़िए।
इन्सान के अपने यौम-ए-पैदाइश से ज़्यादा अहम दिन उस के लिए और कौन सा हो सकता है। ये दिन बार बार आता है और इन्सान को ख़ुशी और दुख से मिले जुले जज़्बात से भर जाता है। हर साल लौट कर आने वाली सालगिरा ज़िंदगी के गुज़रने और मौत से क़रीब होने के एहसास को भी शदीद करती है और ज़िंदगी के नए पड़ाव की तरफ़ बढ़ने की ख़ुशी को भी। सालगिरा से वाबस्ता और भी कई ऐसे गोशे हैं जिन्हें शायद आप न जानते हों। हमारे इस इन्तिख़ाब को पढ़िए।
कबाब-ए-दिल-ए-समंदरکباب دل سمندر
kabaab made from the heart of ocean
ग़म-ए-दिल वहशत-ए-दिल
मोहम्मद हसन
जीवनीपरक
किताब-ए-दिल-ओ-दुनिया
इफ़्तिख़ार आरिफ़
कुल्लियात
Irfan Siddiqi Number: Shumara Number-013
सय्यद महमूद नक़वी
हदीस-ए-दिल
आईना-ए-दिल
आदिल रशीद
नॉवेल / उपन्यास
सफ़ीना-ए-दिल
सिकंदर लखनवी
नात
ज़ख़्म-ए-दिल
अबुल फ़ज़ल सिद्दीक़ी
हर्फ़-ए-दिल रस
शानुल हक़ हक़्क़ी
काव्य संग्रह
जज़बा-ए-दिल
सलमा कँवल
रोमांटिक
सोज़-ए-दिल
ग़ज़ल
रईस अख़तर
ख़ून-ए-दिल की कशीद
मिर्ज़ा ज़फ़रुल हसन
लेख
Shumara Number-006,007
Mar, Apr 2001हदीस-ए-दिल
काएनात-ए-दिल
मुनव्वर लखनवी
मसनवी
हिकायात-ए-दिल पसन्द
मौलवी मोहम्मद मेहदी वासिफ़
शिक्षाप्रद
दिल-ए-नादाँ
कृष्ण मोहन
आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आयाआप ने याद दिलाया तो मुझे याद आया
अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार सुनाया नहीं जाताजो राज़ अयाँ हो वो बताया नहीं जाता
दीवानों में ज़िक्र-ए-दिल-ए-दीवाना रहेगाजब मैं न रहूँगा मिरा अफ़्साना रहेगा
वो अक्स-ए-दिल-ए-आश्ना छोड़ आएकहीं भी जो नक़्श-ए-वफ़ा छोड़ आए
داد دل مجرد جاں اے شوق ستم گر دے اس گل کو صبا جاکر یہ عرض مکرر دے اس وصل کی آتش کو کوئی دیکھ کے ٹھہرے ہیں پرواز نمن اڑ کر رہتے نہیں وہ سردے آئی ہے بہار اب تو صیاد ہے بے تابی جا دیکھیں گلستاں کو گر کھول ہمیں پردے ہنگام جوانی کی پوچھو نہ یہ سرگرمی بہتر جو گزرتی ہے ہر دم بدم سردے اے زاہد ہرجائی مت منع محبت کر یہ بار نہیں ایسا جو سرمستی کو دھر دے ہے نشہ ان آنکھوں سے کیوں کر نہ خمار اترے مینائے دل اے ساقی خالی ہے اگر بھردے جب دل کو دیا تو نے یوں مفت میں اے عارفؔ گر یار ترا چاہے چل جی کو نذر کردے
कुछ ख़याल-ए-दिल-ए-हस्सास मिरी जाँ रखनाआइना टूट भी सकता है ये इम्काँ रखना
मुश्किल है रोक आह-ए-दिल-ए-दाग़दार कीकहते हैं सौ सुनार की और इक लुहार की
इहानत-ए-दिल-ए-सब्र-आज़मा नहीं करतेबुलंद हम भी ये दस्त-ए-दुआ नहीं करते
फ़क़त शोर-ए-दिल-ए-पुर-आरज़ू थान अपने जिस्म में हम थे न तू था
मिरे क़दह में है सहबा-ए-आतिश-ए-पिन्हाँब-रू-ए-सुफ़रा कबाब-ए-दिल-ए-समंदर खींच
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