aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "saaqii"
मैं ने जाना कासा-ए-सर है किसी मय-ख़्वार कावाज़गूना दस्त-ए-साक़ी में जो पैमाना हुआ
फ़रेब-ए-साक़ी-ए-महफ़िल न पूछिए 'मजरूह'शराब एक है बदले हुए हैं पैमाने
लबरेज़ कर इस दौर में ऐ साक़ी-ए-कमज़र्फ़मत रख मय-ए-गुलगूँ से तही जाम हमारा
अजब साक़िया गंदुमी रंग हैकि परतव से बनती है धानी शराब
कुछ मस्त निगाह-ए-साक़ी है कुल मय में है जो कुछ बाक़ी हैमय-ख़ाने के बाहर कुछ भी नहीं मय-ख़ाने में जन्नत होती है
आज यूँ ही साक़िया जाम-ए-अर्ग़वाँ चलेजैसे बज़्म-ए-वा'ज़ में शैख़ की ज़बाँ चले
हाए गर्दिश वो चश्म-ए-साक़ी कीमैं ये समझा कि जाम चलता है
मुझे ये बता दे तू साक़िया जिसे मय-कदे से गुरेज़ थातिरी मस्त आँखों में वो 'क़मर' ये बता कि कैसे उतर गया
तिश्नगी मोहर-ब-लब तिश्ना-लबी है अब तोचश्म-ए-साक़ी की शिकायत नहीं करने देती
उस अंजुमन में कि चश्म-ए-साक़ी कफ़ील हो ऐश-ए-ज़िंदगी कीवो बादा-ख़्वारी में ख़ाम होंगे जो फ़िक्र-ए-जाम-ओ-सुबू करेंगे
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