aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "अज़ाब"
अरविन्द शर्मा अज़ान
born.1982
शायर
समीर अंजान
अंजाम
मोहम्मद साक़िब अंजान
लेखक
अहमद अली अजीब
अजाइब घर, लाहौर
पर्काशक
मकतबा अज़ाद, पटना
अज़ाद प्रिंटिंग प्रेस, देवबन्द
मज़हरुल अजाइब प्रेस, मुशक गंज
रहीम अंजान
मतबा मज़हर-उल-अजाइब, दिल्ली
हक़ संभली
born.1934
मज़हरुल अजाएब, मद्रास
अजाएब चित्रकार
इब्न-ए-अबी अल-अज़ा हनफ़ी
न आशिक़ी जुनून कीकि ज़िंदगी अज़ाब हो
तुम मुझ को जान कर ही पड़ी हो अज़ाब मेंऔर इस तरह ख़ुद अपनी सज़ा बन गया हूँ मैं
ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैंज़बाँ मिली है मगर हम-ज़बाँ नहीं मिलता
आए कुछ अब्र कुछ शराब आएइस के बा'द आए जो अज़ाब आए
बदल चुका है बहुत अहल-ए-दर्द का दस्तूरनशात-ए-वस्ल हलाल ओ अज़ाब-ए-हिज्र हराम
अज़ाब शायरी
घर के मज़मून की ज़्यादा-तर सूरतें नई ज़िंदगी के अज़ाब की पैदा की हुई हैं। बहुत सी मजबूरियों के तहत एक बड़ी मख़लूक़ के हिस्से में बे-घरी आई। इस शायरी में आप देखेंगे कि घर होते हुए बे-घरी का दुख किस तरह अंदर से ज़ख़्मी किए जा रहा है और रूह का आज़ार बन गया है। एक हस्सास शख़्स भरे परे घर में कैसे तन्हाई का शिकार होता है, ये हम सब का इज्तिमाई दुख है इस लिए इस शायरी में जगह जगह ख़ुद अपनी ही तस्वीरें नज़र आती हैं।
शहर की ज़िंदगी नए और तरक़्क़ी याफ़्ता ज़माने के एक ख़ूबसूरत अज़ाब है। जिस की चका चौंद से धोका खा कर लोग इस फंस तो गए लेकिन उन के ज़हनी और जज़्बाती रिश्ते आज भी अपने माज़ी से जुड़े हैं। वो इस भरे परे शहर में पसरी हुई तन्हाई से नालाँ हैं और इस की मशीनी अख़्लाक़ियात से शाकी। ये दुख हम सब का दुख है इस लिए इस शायरी को हम अपने जज़्बात और एहसासात से ज़्यादा क़रीब पाएगे।
अज़ाबعذاب
torment/agony
फ़सान-ए-अजाइब
रजब अली बेग सुरूर
दास्तान
दिल्ली की चन्द अजीब हस्तियाँ
अशरफ़ सबूही
गद्य/नस्र
अज़ाद की कहानी ख़ुद अज़ाद की ज़बानी
अबुल कलाम आज़ाद
जीवनी
फ़साना-ए-अजाइब
फ़िक्शन
क़ब्र का अज़ाब
बाल-साहित्य
किताबुल अंसाब
अब्दुल वदूद उस्मानी
फ़साना-ए-अजाइब का तन्क़ीदी मुताला
सय्यद ज़मीर हसन
फ़िक्शन तन्क़ीद
फ़साना-ए-अजाइब बा-तसवीर
अज़ाब-ए-दानिश
निकहत हसन
महिलाओं की रचनाएँ
अाब-ए-काैसर
शैख़ मोहम्मद इकराम
इस्लामिक इतिहास
अजीब चिड़िया
इस्माइल मेरठी
नज़्म
प्रोफ़ेसर एस की अजीब दास्तान
मुशर्रफ़ आलम ज़ौक़ी
नॉवेल / उपन्यास
अजाएब ख़ाना-ए-इश्क़
इलियास सीतापुरी
अज़ान-ए-शेर
अब्दुल मतीन नियाज़
Silk-e-Gham-e-Husain
सलाम
जो हम पे गुज़रे थे रंज सारे जो ख़ुद पे गुज़रे तो लोग समझेजब अपनी अपनी मोहब्बतों के अज़ाब झेले तो लोग समझे
अबस का निर्ख़ तो इस वक़्त बढ़ना चाहिए भी थाअजब बे-माजरा बे-तौर बेज़ाराना हालत है
याद-ए-माज़ी 'अज़ाब है या-रबछीन ले मुझ से हाफ़िज़ा मेरा
बड़े अज़ाब में हूँ मुझ को जान भी है अज़ीज़सितम को देख के चुप भी रहा नहीं जाता
आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों परक्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
हवा की तरह मुसाफ़िर थे दिलबरों के दिलउन्हें बस एक ही घर का अज़ाब क्या देते
जुनून है सवाब काख़याल है अज़ाब का
आए कुछ अब्र कुछ शराब आएइस के ब'अद आए जो अज़ाब आए
रंग में उस के अज़ाब-ए-ख़ीरगी शामिल नहींकैफ़-ए-एहसासात की अफ़्सुर्दगी शामिल नहीं
हर एक जिस्म रूह के अज़ाब से निढाल हैहर एक आँख शबनमी हर एक दिल फ़िगार है
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