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शेर
मिज़्गाँ-ज़दन से कम है ज़मान-ए-नमाज़-ए-इश्क़
हो जावे फ़ौत वक़्त ही जब तक वज़ू करें
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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ग़ज़ल
वो नमाज़-ए-इश्क़ ही क्या जो सलाम तक न पहुँचे
कि क़ूऊद से जो गुज़रे तो क़याम तक न पहुँचे
मुहम्मद अय्यूब ज़ौक़ी
ग़ज़ल
काग़ज़-ए-अब्री पे लिख हाल-ए-दिल-ए-पुर-सोज़-ए-इश्क़
गिर्द उस के बर्क़ की तहरीर खींचा चाहिए
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
नाला है ख़ाना-ज़ाद-ए-इश्क़ लेक कहाँ सर-ओ-दिमाग़
अपने तो क़ाफ़िले के बीच जो है जरस ख़मोश है
इश्क़ औरंगाबादी
शेर
ऐ मुक़ल्लिद बुल-हवस हम से न कर दावा-ए-इश्क़
दाग़ लाला की तरह रखते हैं मादर-ज़ाद हम
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
झुका कर एक मैं सर नाम अपना कर दिया रौशन
फ़ुनून-ए-इश्क़ में कम कोई परवाना सा पक्का है