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ग़ज़ल
ब-रंग-ए-बू-ए-गुल उस बाग़ के हम आश्ना होते
कि हमराह-ए-सबा टुक सैर करते फिर हवा होते
मीर तक़ी मीर
कुल्लियात
ब-रंग-ए-बू-ए-गुल उस बाग़ के हम आश्ना होते
कि हमराह-ए-सबा टुक सैर करते फिर हवा होते
मीर तक़ी मीर
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ग़ज़ल
फ़रहत-ए-बू-ए-समन निकहत-ए-रैहान-ए-ग़ज़ल
तुझ से रौशन है मिरी शम्अ'-ए-शबिस्तान-ए-ग़ज़ल
अयाज़ आज़मी
ग़ज़ल
नहीं हवा में ये बू नाफ़ा-ए-ख़ुतन की सी
लपट है ये तो किसी ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन की सी
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
फ़ज़ा में बू-ए-गुल-ए-मुश्क-बार है कि नहीं
हवा के दोष पे पैग़ाम-ए-यार है कि नहीं
लुत्फुल्लाह खां नज़्मी
नज़्म
ये कौन आया
ख़्वाबों के गुलिस्ताँ की ख़ुश-बू-ए-दिल-आरा है
या सुब्ह-ए-तमन्ना के माथे का सितारा है