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कुल्लियात
आशिक़ जहाँ हुआ है बे-ढंगियाँ ही की हैं
इस मीर-ए-बे-ख़िरद ने कब ढब से दिल लगाया
मीर तक़ी मीर
कुल्लियात
सोहबत किसू से रखने का उस को न था दिमाग़
था 'मीर'-ए-बे-दिमाग़ को भी क्या बला दिमाग़
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मजनून-ए-बे-ख़िरद ने दी जाँ ब-ना-उमीदी
लैला का देखते ही महमिल तड़प तड़प कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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ग़ज़ल
चंद रोज़ा है ये मय-ख़ाना-ए-हस्ती याँ तो
उम्र ग़फ़लत में न ऐ बे-ख़िरद-ओ-होश गुज़ार
जुरअत क़लंदर बख़्श
कुल्लियात
तड़पे है मुत्तसिल वो कहाँ ऐसे रोज़-ओ-शब
है फ़र्क़ 'मीर' बर्क़-ओ-दिल-ए-बे-क़रार में
मीर तक़ी मीर
कुल्लियात
न करिए गिर्या-ए-बे-इख़्तियार हरगिज़ 'मीर'
जो इश्क़ करने में दिल पर कुछ इख़्तियार रहे