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नज़्म
मुफ़्लिसी
चूल्हा तवाना पानी के मटके में आबी है
पीने को कुछ न खाने को और ने रकाबी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हिण्डोला
जो बद-क़िमार हो एेबी हो या हो बद-सूरत
मुझे भी याद है नौ दस बरस ही का मैं था
फ़िराक़ गोरखपुरी
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नज़्म
ख़ुशामद
हक़ तो ये कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है
रूखी और रोग़नी आबी को ख़ुशामद कीजे
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
नज़्म
लब-ए-जू-ए-बारे
ज़िंदगी गर्म थी हर बूँद में आबी पाऊँ
ख़ुश्क पत्तों पे फिसलते हुए जा पहुँचे थे!