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नज़्म
मिरे हमदम मिरे दोस्त!
तिरी आँखों की उदासी तेरे सीने की जलन
मेरी दिल-जूई मिरे प्यार से मिट जाएगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
एक रह-गुज़र पर
ग़रज़ वो हुस्न अब इस रह का जुज़्व-ए-मंज़र है
नियाज़-ए-इश्क़ को इक सज्दा-गह मयस्सर है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
समस्त
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ग़ज़ल
मक़्सद-ए-इश्क़ हम-आहंगी-ए-जुज़्व-ओ-कुल है
दर्द ही दर्द सही दिल बू-ए-दम-साज़ तो दे
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तमन्ना-ए-मुहाल-ए-दिल को जुज़्व-ए-ज़िंदगी कर के
फ़साना ज़ीस्त का पेचीदा करता जा रहा हूँ मैं