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नज़्म
हिण्डोला
रगों में छूटते रहते थे बे-शुमार अनार
नदीम ये हैं मिरे बाल-पन के कुछ आसार
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
जाने क्यूँ ऐसा हूँ मैं
लाल पतंग और पीली मैना इन्द्र-धनुष और नदी की धार
आते हैं जब ख़्वाब में मेरे दीवाना हो जाता हूँ
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
ख़्वाहिश के ख़्वाब
एक अनार का पेड़ बाग़ में और घटा मतवारी थी
आस-पास काले पर्बत की चुप की दहशत तारी थी