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नज़्म
रामायण का एक सीन
आख़िर असीर-ए-यास का क़ुफ़्ल-ए-दहन खुला
अफ़्साना-ए-शदाइद-ए-रंज-ओ-मेहन खुला
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
देर से क़ुफ़्ल पड़ा दरवाज़ा इक दीवार ही लगता था
उस पर एक खुले दरवाज़े की तस्वीर लगा ली है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
नज़्म
हुब्ब-ए-वतन
बंद उस क़ुफ़्ल में है इल्म उन का
जिस की कुंजी का कुछ नहीं है पता
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
नूर-ए-सहर ने निकहत-ए-गुल ने रंग-ए-शफ़क़ ने कह दी बात
कितना कितना मेरी ज़बाँ पर क़ुफ़्ल लगाया लोगों ने