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नज़्म
शिकवा
दर्द-ए-लैला भी वही क़ैस का पहलू भी वही
नज्द के दश्त ओ जबल में रम-ए-आहू भी वही
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
याद
दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स ओ ख़ाक तले
खिल रहे हैं तिरे पहलू के समन और गुलाब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
तेरे पहलू से जो उठ्ठूँगा तो मुश्किल ये है
सिर्फ़ इक शख़्स को पाऊँगा जिधर जाऊँगा