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शेर
तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया
मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इबलीस की मजलिस-ए-शूरा
मश्रिक-ओ-मग़रिब की क़ौमों के लिए रोज़-ए-हिसाब
इस से बढ़ कर और क्या होगा तबीअ'त का फ़साद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मस्जिद-ए-क़ुर्तुबा
मिट नहीं सकता कभी मर्द-ए-मुसलमाँ कि है
उस की अज़ानों से फ़ाश सिर्र-ए-कलीम-ओ-ख़लील
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
बहुत मुद्दत के नख़चीरों का अंदाज़-ए-निगह बदला
कि मैं ने फ़ाश कर डाला तरीक़ा शाहबाज़ी का
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नज़्र-ए-अलीगढ़
ज़र्रात का बोसा लेने को सौ बार झुका आकाश यहाँ
ख़ुद आँख से हम ने देखी है बातिल की शिकस्त-ए-फ़ाश यहाँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जम्हूरियत
इस राज़ को इक मर्द-ए-फ़रंगी ने किया फ़ाश
हर-चंद कि दाना इसे खोला नहीं करते
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
क्यूँकर हुआ है फ़ाश ज़माने पे क्या कहें
वो राज़-ए-दिल जो कह न सके राज़-दाँ से हम