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नज़्म
आज़ादी
दिलों में अहल-ए-ज़मीं के है नीव उस की मगर
क़ुसूर-ए-ख़ुल्द से ऊँचा है बाम-ए-आज़ादी
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
नूह नारवी
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नज़्म
मताअ-ए-राएगाँ
ये दुनिया ख़ौफ़ और लालच पे जिस की नीव रक्खी है
इसी मिट्टी से फूटे हैं इसी धरती के पाले हैं
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
इक सितारा आदर्श का
वो समय की नीव थी गर्म-ओ-गुदाज़
मुद्दतों ता'मीर की दीवार अपनी
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
ग़ज़ल
नीव बैठी जा रही है सारी दीवारें गईं
घर का बासी घर की हालत से नहीं क्या आश्ना