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नज़्म
दो इश्क़
उस राह पे फैलेगी शफ़क़ तेरी क़बा की
फिर देखे हैं वो हिज्र के तपते हुए दिन भी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
फ़िक्र-ए-नाला में गोया हल्क़ा हूँ ज़े-सर-ता-पा
उज़्व उज़्व जूँ ज़ंजीर यक-दिल-ए-सदा पाया