aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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जम्मू एण्ड कशमीर एकेडेमी ऑफ़ आर्ट, कल्चर एण्ड लैंग्वेजेज़
पर्काशक
मतबूआ-ए-दारुत-तबा सरकार-ए-आली
नुसरत आर्ट प्रेस, रबुआ
दी फाइन आर्ट प्रिंटिंग, इलाहाबाद
चिश्ती आर्ट सेंटर, पेशावर
लिबर्टी आर्ट प्रेस, नई दिल्ली
कुरैशी आर्ट प्रेस, लाहौर
सनराइज आर्ट प्रिंटर्स, लाहौर
हमीदा आर्ट प्रेस, भोपाल
अस्त अली खां मलकांण
शायर
दारुल रियानुत्तुरास
दार-उत-तबा दरबार जावरह
नवाब शराफ़-उद-दौला बहादुर
लेखक
सलमान आर्ट प्रेस, लाहौर
बेरी आर्ट प्रेस, दिल्ली
न पूछ-गछ थी किसी की वहाँ न आव-भगततुम्हारी बज़्म में कल एहतिमाम किस का था
चूँ शम-ए-सोज़ाँ चूँ ज़र्रा हैराँ ज़ मेहर-ए-आँ-मह बगश्तम आख़िरन नींद नैनाँ न अंग चैनाँ न आप आवे न भेजे पतियाँ
वो ख़्वाब थे ही चँबेलियों से सो सब ने हाकिम की कर ली बै'अतफिर इक चँबेली की ओट में से जो साँप निकले तो लोग समझे
तुम छुपा लो मिरा दिल ओट में अपने दिल कीऔर मुझे मेरी निगाहों से भी ओझल कर दो
ख़राब सदियों की बे-ख़्वाबियाँ थीं आँखों मेंअब इन बे-अंत ख़लाओं में ख़्वाब क्या देते
महिलाओं की आत्मकथाओं का चयन
रेख़्ता ने अपने पाठकों के अनुभव से, प्राचीन और आधुनिक कवियों की उन पुस्तकों का चयन किया है जो सबसे अधिक पढ़ी जाती हैं.
रूसी साहित्य का उर्दू में अनुवाद यहाँ पढ़े.
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मुक़ामी: बोल चाल: बरत (कब) कुछ भी , कोई भी शैय-
Dar-ut-Tarjuma Usmania Ki Ilmi Aur Adabi Khidmaat
मुजीबुल इसलाम
साहित्यिक आंदोलन
Kitab-ut-Taklees
हकीम मोहम्मद कबीरुद्दीन
औषधि
ए वॉइस फ्रॉम दी ईस्ट
ज़ुल-फ़िक़ार अली ख़ान
आलोचना
The Art And Science Of Ghazal
एलिज़ाबेथ कुरियन मोना
शायरी तन्क़ीद
A Message From The East
अल्लामा इक़बाल
शायरी
East India Company Aur Baghi Ulama
इंतिज़ामुल्लाह शहाबी
Islami Art Aur Fan-e-Tameer
एर्नस्ट कुहनेल
Muntakhab-ut-Tawareekh Urdu
मुल्ला अब्दुल क़ादिर बदायुनी
मुंशी नवल किशोर के प्रकाशन
मुंतख़ब-उत-तवारीख़
हकीम जवाहर लाल अकबराबादी
Aurt Islami Muashre Mein
सय्यद जलालुद्दीन उमरी
इस्लामियात
Anees-ut-Taalibeen
शाह बहाउद्दीन नक़्शबन्दी
अनुवाद
East India Company Aur Baghi Ulma
Hidayat-ut-Talibeen
ख़्वाजा मोहम्मद सालेह
सूफ़ीवाद / रहस्यवाद
The Art of Powerfull communication
दिनेश वोहरा
स्वास्थ्य
Muntakhab-ut-Tawareekh
मुल्ला अब्दुल क़ादिर
भारत का इतिहास
ले के पहुँचे जहाँबट रहे थे घटा-टोप बे-अंत रातों के साए
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता हैहवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है
अपने बे-अंत ख़यालों मेंहर अहद निभाने की क़स्में
धूल में अट गए हैं सारे ग़ज़ालइतनी शिद्दत से रम किया गया है
अंदेशों की रेत न फाँकोप्यास की ओट सराब न देखो
याँ धन-दौलत का अंत नहींहों घात में डाकू लाख मगर
अब सुब्ह ओ शाम शायद गिर्ये पे रंग आवेरहता है कुछ झमकता ख़ूनाब चश्म-ए-तर में
ये ज़िद कि आज न आवे और आए बिन न रहेक़ज़ा से शिकवा हमें किस क़दर है क्या कहिए
जो कोई आवे है नज़दीक ही बैठे है तिरेहम कहाँ तक तिरे पहलू से सरकते जावें
ऊँट उश्तुर और अशगर सियह हैगोश्त है लहम और चर्बी पिया है
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