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ग़ज़ल
वाए क़िस्मत पाँव की ऐ ज़ोफ़ कुछ चलती नहीं
कारवाँ अपना अभी तक पहली ही मंज़िल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
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ग़ज़ल
हिरास-ए-शब, असर-ए-ज़ोफ़, ख़ौफ़-ए-राहज़नाँ
मुसाफ़िरों पे गिराँ वक़्त-ए-शाम होता है
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
लिटा के सीने पे चंचल को प्यार से हर-दम
मैं गुदगुदाता था हँस हँस वो ज़ोफ़ खोता था