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ग़ज़ल
जब भी ऐ 'शौक़' ज़रा दिल को सुकूँ मिलने लगा
हम को उस शौक़ के अंदाज़-ए-नज़र याद आए
विशनू कुमार शाैक़
ग़ज़ल
नज़र से सब की पिन्हाँ है जो अंदाज़-ए-नज़र अपना
कहीं मिट्टी में मिल जाए न सब कस्ब-ए-हुनर अपना
इशरत अनवर
नज़्म
मर्द-ए-बुज़ुर्ग
اس کا انداز نظر اپنے زمانے سے جدا
اس کے احوال سے محرم نہيں پيران طريق