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नज़्म
व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक (हम देखेंगे)
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
एक आरज़ू
बिजली चमक के उन को कुटिया मिरी दिखा दे
जब आसमाँ पे हर सू बादल घिरा हुआ हो
अल्लामा इक़बाल
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ग़ज़ल
शफ़क़ धनक महताब घटाएँ तारे नग़्मे बिजली फूल
इस दामन में क्या क्या कुछ है दामन हाथ में आए तो
अंदलीब शादानी
नज़्म
तसव्वुर
नशीली आँखें, रसीली चितवन, दराज़ पलकें, महीन अबरू
तमाम शोख़ी, तमाम बिजली, तमाम मस्ती, तमाम जादू