aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "برعکس"
राशिद ब्राद्रस
पर्काशक
कृष्णा ब्रादर्स, कांगड़ा
फ़्रेन्क ब्रदर्स एण्ड कम्पनी, नोएडा
वेन वोइक ब्रोकस
लेखक
गेराल्डिन ब्रूक्स
born.1955
جو برعکس چاہے، توووں موڑیوزمیں سے لگا اور تا آسماں
उनसे कटकर मैं एक दूसरी टोली में जा मिला। यहाँ मरहूम के एक शनासा और मेरे पड़ोसी उनके गिल्र्ड़ लड़के को सब्र-ए-जमील की तल्क़ीन और गोल मोल अलफ़ाज़ में नाएम-उल-बदल की दुआ देते हुए फ़रमा रहे थे कि बर्ख़ुर्दार! ये मरहूम के मरने के दिन नहीं थे। हालाँकि पाँच मिनट...
अलबत्ता वो मुस्कुराया अक्सर करती थी। जब वो मुस्कुराती तो उसके होंट खुल जाते और आँखें भीग जातीं। हाँ तो मैं समझती थी कि आपा चुपकी बैठी ही रहती है। ज़रा नहीं हिलती और बिन चले लुढ़क कर यहाँ से वहाँ पहुँच जाती है जैसे किसी ने उसे धकेल दिया...
मैंने उससे कुछ न कहा क्योंकि वो गहरे फ़िक्र में ग़र्क़ हो गई थी। शायद वो सोच रही थी कि “इतना ज़रूर” क्या है? थोड़ी देर के बाद उसके पतले होंटों पर वही ख़फ़ीफ़ पुरअसरार मुस्कुराहट नुमूदार हुई जिससे उसके चेहरे की संजीदगी में थोड़ी सी आ’लिमाना शरारत पैदा हो...
जमील दराज़ क़द नहीं था मगर अच्छे ख़द्द-ओ-ख़ाल का मालिक था। मेरा मतलब है कि उसे ख़ूबसूरत न कहा जाए तो उसके क़ुबूल सूरत होने में शक-ओ-शुहबा नहीं था। रंग गोरा और सुर्ख़ी माइल, तेज़-तेज़ बातें करने वाला, बला का ज़हीन, इंसानी नफ़सियात का तालिब-ए-इल्म, बड़ा सेहत मंद। उसके दिल-ओ-दिमाग़...
तख़्लीक़ी ज़बान तर्सील और बयान की सीधी मंतिक़ के बर-अक्स होती है। इस में कुछ अलामतें है कुछ इस्तिआरे हैं जिन के पीछे वाक़यात, तसव्वुरात और मानी का एक पूरा सिलसिला होता है। सय्याद, नशेमन, क़फ़स जैसी लफ़्ज़ियात इसी क़बील की हैं। शायरी में सय्याद चमन में घात लगा कर बैठने वाला एक शख़्स ही नहीं रह जाता बल्कि उस की किरदारी सिफ़त उस के जैसे तमाम लोग को उस में शरीक कर लेती है। इस तौर पर ऐसी लफ़्ज़ियात का रिश्ता ज़िंदगी की वुसअत से जुड़ जाता है। यहाँ सय्याद पर एक छोटा सा इन्तिख़ाब पढ़िए।
रौशनी और प्रकाश के आंशिक या पूर्ण अभाव को अंधेरा कहा जाता है । अर्थात वो समय या स्थिति जिस में प्रकाश या रौशनी न हो । अंधेरा अपने स्वभाविक अंदाज़ में भी उर्दू शायरी में आया है और जीवन के नकारात्मकता का रूपक बना है । लेकिन ये शायरी में अपने रूपक का विस्तार भी है कि कई जगहों पर यही अंधेरा आधुनिक जीवन की चकाचौंध के सामने सकारात्मक रूप में मौजूद है । अंधेरे को रूपक के तौर पर शायरी ने अपना कर कई नए अर्थ पैदा किए हैं ।
तख़्लीक़ी ज़बान तर्सील और बयान की सीधी मंतिक़ के बर-अक्स होती है। इस में कुछ अलामतें हैं कुछ इस्तिआरे हैं जिन के पीछे वाक़ियात, तसव्वुरात और मानी का पूरा एक सिलसिला होता है। चमन, सय्याद, गुलशन, नशेमन, क़फ़स जैसी लफ़्ज़ियात इसी क़बील की हैं। यहाँ जो शायरी हम-पेश कर रहे हैं वह चमन की उन जहतों को सामने लाती है जो आम तौर से हमारी निगाहों से ओझल होती है।
बर-अक्सبرعکس
on the contrary, in opposition (to), as against
विसदृश, प्रतिकूल, खिलाफ़, प्रत्युत, बरखिलाफ़ ।
Aks Bar Aks
शमीम अहमद सिद्दीक़ी
Parde Ke Peeche
नारीवाद
Aks Aur Bar-Aks
सुधा मूर्ती
Post Box Number-203 Nala Supara
चित्रा मुद्गल
उपन्यास
Black Box
कश्मीरी लाल ज़ाकिर
नॉवेल / उपन्यास
Shikast-e-Zulmat
अफ़साना
Qissa Futooh-ul-Yaman
अबुल्हसन अल-बकरी
इतिहास
सारे घर में अगर किसी को काकी से मुहब्बत थी तो वो बुध राम की छोटी लड़की लाडली थी। लाडली अपने दोनों भाइयों के ख़ौफ़ से अपने हिस्से की मिठाई या चबेना बूढ़ी काकी के पास बैठ कर खाया करती थी यही उसका मलजा था और अगरचे काकी की पनाह...
मैं उससे पेश्तर कह चुका हूँ कि मंटो अव़्वल दर्जे का फ़राड है। इस का मज़ीद सबूत ये है कि वो अक्सर कहा करता है कि वो अफ़साना नहीं सोचता ख़ुद अफ़साना उसे सोचता है। ये भी एक फ़राड है हालाँकि मैं जानता हूँ कि जब उसे अफ़साना लिखना होता...
ज़ाहिरी आहंग वो बातिनी हद है, शे’र जिससे बाहर नहीं निकल सकता। लिहाज़ा न सिर्फ़ ये कि इसका अपना मुस्तक़िल वुजूद है बल्कि ये भी कि वो इस हद तक मअनी पर हुकूमत भी करता है। ड्रायडन ने क़ाफ़िया की तारीफ़ करते हुए लिखा है कि अच्छा क़ाफ़िया वो है...
और मेरे साथ ही, मुझसे कछ पहले चारपाई भी खड़ी हो गई। कहने लगी, “क्या बात है? आप कुछ बेक़रार से हैं। मेदे का फे़’ल दुरुस्त नहीं मालूम होता।”...
इस आइने ने उसूलों पे ज़िद न की वर्नामैं अपने आप के बर-अक्स होने वाला था
سعید کا باپ اس پر اکثر سخت ناراض رہتا تھا۔ وہ ایک تیز طبیعت کا سخت گیر باپ تھا۔ اس کو اپنے بیٹے کی ان حرکتوں پر سخت غصہ آتا تھا اور چنانچہ وہ اس کو کڑی سے کڑی سزا بھی دیتا، لیکن وہ اپنی زندگی میں اس کو سدھارنے...
ایک بچارہ جہازی غلام تھا کہ اس نے قید زنجیر اور جہازی محنت کی تکلیف سے دق ہو کر اس عذاب کو چھوڑا تھا اور جھولے کے مرض کو لے لیا تھا۔ اسے دیکھا کہ دو قدم چل کر بیٹھ گیا ہے اور سر پکڑ کر بسور رہا ہے۔ غرض...
शाम को एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी। टाट बिछा हुआ था। हुक़्क़े का भी इंतिज़ाम था, ये सब शेख़ जुम्मन की मेहमान-नवाज़ी थी। वो ख़ुद अलगू चौधरी के साथ ज़रा दूर बैठे हुक़्क़ा पी रहे थे। जब कोई आता था एक दबी हुई सलाम अलैक से उसका ख़ैर-मक़्दम करते...
शाह साहब ने चंद लम्हात अपने हाफ़िज़े को फिर टटोला और अपनी दास्तान शुरू की, “मंटो साहब! जैसा कि मैं आपसे पहले अर्ज़ कर चुका हूँ कि मैं काबुल में था। ये कोई दस बरस पहले की बात है जब मेरी सेहत बहुत अच्छी थी। यूं तो मैं अब भी...
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