aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "بزاز"
पंडित प्रेम नाथ बज़्ज़ाज़
लेखक
मोहम्मद तुराब अली खान बाज़
बुढ़िया ने अपने बिसात के मुताबिक़ काग़ज़ी फूलों और सिगरेट की डिबियों से बनाई हुई बेलों से दुकान की कुछ आराइश भी की, बा’ज़ एक्टरों और एक्ट्रसों की तस्वीरें भी पुराने रिसालों से निकाल कर लेई से दीवारों पर चिपका दीं। दुकान का अस्ल माल दो तीन क़िस्म के सिगरेट के तीन-तीन चार-चार पैकेटों, बीड़ी के आठ दस बंडलों या दिया सलाई की निस्फ़ दर्जन डिबियों, पानी की ढोली,...
प्रकाश के होंटों के कोने तंज़ से सिकुड़ गए, “चौधरी साहब क़िबला! आप बिल्कुल बकवास करते हैं। शराफ़त को रखिए आप अपने सिगरेट के डिब्बे में, और ईमान से कहिए वो लौंडिया जिसके लिए आप पूरा एक बरस रूमालों को बेहतरीन लैवेंडर लगा कर स्कीमें बनाते रहे, क्या आपको मिल गई थी?”चौधरी साहब ने किसी क़दर खिसयाना हो कर जवाब दिया, “नहीं।”
बात पक्की हो गई और शादी का सामान होने लगा। ठाकुर साहब उन अस्हाब में से थे जिन्हें अपने ऊपर भरोसा नहीं होता। उनकी निगाह में प्रकाश की डिग्री अपने साठ साला तजर्बे से ज़्यादा कीमती थी। शादी का सारा इन्तिज़ाम प्रकाश के हाथों में था, दस बारह हज़ार रुपये से ज़्यादा क़ीमती थी। शादी का सारा इंतिज़ाम प्रकाश के हाथों में था, दस बारह हज़ार रुपये ख़र्च करने का इख़्तिय...
دیوانہ بنانا ہے دیوانہ بنادےاس غزل نے اسے دیوانہ بنا دیا تھا،جہاں جاؤ’’دیوانہ بنانا ہے تو دیوانہ بنا دے‘‘ الاپا جارہا ہے۔ آخر کیا مطلب ہے کو ٹھے پر چڑھو تو کانا اسمٰعیلی ایک آنکھ سے اپنے اڑتے ہوئے کبوتروں کی طرف دیکھ کر اونچے سُروں میں گارہا ہے’’دیوانہ بنانا ہے تو دیوانہ بنا دے‘‘ دریوں کی دوکان پر بیٹھو تو بغل کی دوکان میں لالہ کشوری مل بزاز اپنے بڑے بڑے چو تڑوں کی گدیوں پر آرام سے بیٹھ کر نہایت بھونڈے طریقے سے گانا شروع کر دیتا ہے،
इस तरह अपना दिल मज़बूत करके वो फिर बरामदे में आई तो राम दुलारी ने जैसे रहम की आँखों से देखकर कहा,"जीजा जी की कुछ तरक़्क़ी वरक़्क़ी हुई कि नहीं बहन, या अभी तक वही पछत्तर पर क़लम घिस रहे हैं।"
इंतिज़ार ख़ास अर्थों में दर्दनाक होता है । इसलिए इस को तकलीफ़-देह कैफ़ियत का नाम दिया गया है । जीवन के आम तजरबात से अलग इंतिज़ार उर्दू शाइरी के आशिक़ का मुक़द्दर है । आशिक़ जहाँ अपने महबूब के इंतिज़ार में दोहरा हुआ जाता है वहीं उस का महबूब संग-दिल ज़ालिम, ख़ुद-ग़रज़, बे-वफ़ा, वादा-ख़िलाफ़ और धोके-बाज़ होता है । इश्क़ और प्रेम के इस तय-शुदा परिदृश्य ने उर्दू शाइरी में नए-नए रूपकों का इज़ाफ़ा किया है और इंतिज़ार के दुख को अनन्त-दुख में ढाल दिया है । यहाँ प्रस्तुत संकलन को पढ़िए और इंतिज़ार की अलग-अलग कैफ़ियतों को महसूस कीजिए ।
माशूक़ की एक सिफ़त उस का फ़रेबी होना भी है। वो हर मआमले में धोखे-बाज़ साबित होता है। वस्ल का वादा करता है लेकिन कभी वफ़ा नहीं करता है। यहाँ माशूक़ के फ़रेब की मुख़्तलिफ़ शक्लों को मौज़ू बनाने वाले कुछ शेरों का इन्तिख़ाब हम पेश कर रहे हैं इन्हें पढ़िये और माशूक़ की उन चालाकियों से लुत्फ़ उठाइये।
बज़्ज़ाज़بزاز
cloth merchant
Aazad Kashmir
Baaz Goi
सुरेंद्र प्रकाश
प्रतीकात्मक / कलात्मक कहानियाँ
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लेख
सदा-ए-बाज़गश्त
ज़किया मशहदी
कहानियाँ
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महिलाओं की रचनाएँ
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औषधि
Janbaz Muslim
ख़्वाजा हसन निज़ामी
इतिहास
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नज़र सज्जाद हैदर
Baaz Yaft
महमूद इलाही
शोध एवं समीक्षा
Ganjifa Baaz-e-Khayal
वारिस अल्वी
फ़िक्शन तन्क़ीद
Baz Aur Kawwa
ताहिर अख़्तर मैमन
कहानी
Sawaneh Sir Syed Ek Bazdeed
शाफे क़िदवाई
Janbaz Turk
सादिक़ हुसैन सिद्दीक़ी
ऐतिहासिक
Roopmati Aur Baaz Bahadur
महशर आबिदी
Baaz Aao Aur Zinda Raho
मोहम्मद हनीफ़ रामे
भाषा एवं साहित्य
“आप हैं।”, बिल-आख़िर मौलाना ने ज़बान खोली, “मेरे ख़ास करम-फ़र्मा और हम-वतन मीर नवाज़िश अली। हमारे क़स्बे के सबसे बड़े तअ'ल्लुक़ा-दार क़िबला मीर हशमत अली के बड़े साहब-ज़ादे। मुझे बचपन से आपकी दोस्ती का फ़ख़्र हासिल है... और मीर साहब यही हैं हमारी फ़र्रुख़ भाबी। और ये हैं उनके वो दोस्त जिनका हाल मैं रस्ते में आपसे अर्ज़ कर चुका हूँ।” तआ'रुफ़ का ये तरीक़ा फ़र्ख़न...
फ़य्याज़ ने कहा, और वो लैम्प की बत्ती नीची करके अपने कमरे में चला गया। अगले रोज़ सुबह-दम अभी सूरज निकलने न पाया था कि फ़य्याज़ बिस्तर से उठ बैठक में आ गया। इस वक़्त सर्दी ख़ासी बढ़ गई थी। हैदरी ख़ाँ अपनी गुदड़ी में गठरी बना बे-ख़बर सो रहा था। मगर फ़य्याज़ को जैसे सर्दी की कमी बेशी का कुछ एहसास ही न था। वो सरोद उठा फ़र्श पर उकड़ूँ बैठ गया और हल्के-ह...
किराया मकाँ का अदा करने जाऊँकि बज़्ज़ाज़ ओ ख़य्यात का बिल चुकाऊँ
बिजली पहलवान के मुतअ’ल्लिक़ बहुत से क़िस्से मशहूर हैं। कहते हैं कि वो बर्क़-रफ़्तार था। बिजली की मानिंद अपने दुश्मनों पर गिरता था और उन्हें भस्म कर देता था, लेकिन जब मैंने उसे मुग़ल बाज़ार में देखा तो वो मुझे बेज़रर कद्दू के मानिंद नज़र आया। बड़ा फुसफुस सा, तोंद बाहर निकली हुई, बंद बंद ढीले, गाल लटके हुए, अलबत्ता उसका रंग सुर्ख़-ओ-सफ़ेद था।वो मुग़ल बाज़ार में एक बज़्ज़ाज़ की दुकान पर आलती पालती मारे बैठा था। मैंने उसको ग़ौर से देखा, मुझे उसमें कोई गुंडापन नज़र न आया, हालाँकि उसके मुतअ’ल्लिक़ मशहूर यही था कि हिंदुओं का वो सबसे बड़ा गुंडा है।
لطفے کن و باز آکہ خرابم بہ عتابتدیکھنے والوں نے دیکھا کہ زہرۂ مصری کی حویلی کے پٹ کھلے، ایک بوڑھا دربان باہرآ یا اور بایزید شوقی کو اندر بلا لے گیا۔ وہاں بایزید نے کیا دیکھا، کیا سنا، یہ کسی کو نہیں معلوم، لیکن جب اس کا طائفہ شہر نخجوان سے کوچ کرنے لگا تو بایزید اس میں نہ تھا۔ وہ رہتا کہاں تھا، یہ بھی کسی کو نہ معلوم ہوا۔ اتنا ضرور تھا کہ ہر صبح زہرۂ مصری کی حویلی کا پھاٹک کھلنے کے پہلے ہی وہ سامنے کے چوک پر پہنچ کر کبھی مولوی اور کبھی حافظ کی غزل گاتا، تاآنکہ اس کی طلبی اندر سے نہ آ جاتی۔ دوتین برس یوں ہی گزر گئے۔ بایزید نے کسی اور طائفے کی سنگت بھی نہ اختیار کی تھی اور نہ وہ کہیں کسی کے گھر میں یا کسی تقریب کے موقعے پر گانے ہی کے لیے جاتا تھا۔ شروع شروع میں اس کی طلبیاں بہت تھیں، لیکن پھر سب ہی نے سمجھ لیا کہ اب وہ صرف اپنے لیے اور لبیبہ خانم کے لیے گاتا ہے۔
میں حافظ جی کو ان کے پاس لے کر گیا تو انہوں نے دوکانوں کا پتہ ان کو بتایا۔ ایک چٹ پر لکھ کر دیا اور کہا، ’’منشی منٹو کو اپنے ساتھ لے جاؤ۔۔۔ اور جو کچھ اسے چا ہیئے لے دو۔‘‘ میں حافظ جی کے ساتھ ہو لیا۔ ہم موٹر میں ایک بزاز کی دکان پر پہنچے وہاں سے دو ساڑھیاں لیں، سیٹھ آرڈیشر کے ذاتی اکاؤنٹ میں۔ دوسری دکان جوہری کی تھی۔ وہاں سے ایک آدمی میرے ساتھ کر د...
नाज़िम ने जब ये नज़ारा देखा तो उसका पानी से अध् भीगा जिस्म थरथरा गया। देर तक वो उसी औरत की तरफ़ देखता रहा, जो अपने मस्तूर लेकिन इसके बावजूद उरियां बदन को ऐसी नज़रों से देख रही थी जिससे साफ़ पता चलता था कि वो उसका मसरफ़ ढूँडना चाहती है।नाज़िम बड़ा डरपोक आदमी था। नई नई शादी की थी, इसलिए बीवी से बहुत डरता था। इसके इलावा उसकी सरिश्त में बदकारी नहीं थी। लेकिन ग़ुसलख़ाने के इस सूराख़ ने उसके किरदार में कई सूराख़ कर दिए। उसमें से हर रोज़ सुबह को वो उस औरत को देखता और अपने गीले या ख़ुश्क बदन में अजीब क़िस्म की हरारत महसूस करता।
की मुसलमान बीबियों पर डाक्टर सिद्दीक़ी की मज़हबियत का बे-इंतिहा रौ’ब पड़ा।“लड़की हो तो ऐसी, सात-समुंदर पार हो आई मगर सारी का आँचल मजाल है जो सर से सरक जाए...”, मिसिज़ फ़ारूक़ी ने कहा।
ख़ानसाहब की गुफ़्तगु से कुछ फरेरी सी आई। घर में आया तो ख़ानम को फूल की तरह खुला हुआ पाया। लाहौल वला क़ो।शतरंज जाये चूल्हे में। इतनी अच्छी बीवी से शतरंज के पीछे लड़ना हमाक़त है। कौन लड़े। गोल करो।
لغت، آنکھوں پر غفلت کا پردہ پڑنا، پردے پڑنا (آنکھوں پر پردہ۔ پردے پڑنا پہلے درج کر چکے ہیں) آنکھ کا اندھا، آنکھوں کی اندھی، آنکھ کا، کی کیچڑ (اس کی جگہ ’’کیچڑ‘‘ کی تقطیع میں ہونا چاہیے تھا) آنکھ کی سیل، آنکھوں کی سیل (ان کی جگہ’’سیل‘‘ کی تقطیع میں تھی)۔ آنکھ کی گردش۔ آنکھ سے ٹپ ٹپ آنسو ٹپکنا، چلنا، گرنا۔ آواز باز گشت (اس کی جگہ ’’باز گشت...
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